Carbon Tracker की एक रिपोर्ट के अनुसर Electric Vehicle में परिवर्तन करने वाली नीतियों को अपनाकर एशिया और दक्षिण अमेरिका मिलकर ईंधन आयात पर प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर से अधिक बचा सकते हैं।
Electric Vehicle Transition
लंदन स्थित थिंक-टैंक कार्बन ट्रैकर की एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि जो देश Electric Vehicle को अपनाने में धीमे हैं, उन देशो में उपयोग होने वाले गैसोलीन आधारित कारों को जमा करने का बड़ा खतरा है।
कार्बन ट्रैकर के अधिवेशनिक ऑटोमोटिव विश्लेषक, Ben Scott, ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि वाहन निर्माता अफ्रीका, एशिया, और दक्षिण अमेरिका में पुराने, प्रदूषण उत्सर्जन करने वाले मॉडलों की बिक्री में वृद्धि कर सकते हैं। इसका कारण यह है कि चीन, उत्तरी अमेरिका, और यूरोप अब आंतरिक दहन इंजन वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटा रहे हैं।
Electric Vehicle Transition: कमजोर डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्य वाले देश
रिपोर्ट में भारत, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, तुर्की, इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस और दक्षिण अफ्रीका को ऐसे देशों के रूप में पहचाना गया है जहां कारों को डीकार्बोनाइज करने का लक्ष्य कमजोर है या कोई लक्ष्य नहीं है। चूंकि कुछ स्थानों पर बैटरी उत्पादन के लिए recycled सामग्री का उपयोग करने की गति बढ़ रही है, इसलिए कई देशों के लिए उनसे सेकेंड-हैंड ईवी आयात करना मुश्किल होगा।
2035 तक, यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और सात अमेरिकी राज्य में प्लग-इन हाइब्रिड को छोड़कर, आंतरिक Internal Combustion Engines (ICE) वाली कारों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर देंगे। ये कानून बाजार में उभरते हुए ईवी उद्योग को एक बड़ा बढ़ावा देंगे और डीकार्बोनाइजिंग परिवहन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाएंगे। हालाँकि, विकासशील देशों ने अभी तक इन उपायो को लागू नहीं किए हैं। इससे यह जोखिम उत्पन्न होगा कि ग्लोबल नॉर्थ में ऑटोमोबाइल उद्योग अपने देशों में प्रतिबंध लागू होने के बाद कई वर्षों तक ग्लोबल साउथ को Internal Combustion Engines (ICE) वाहन बेचना जारी रख सकता है।
आगे रिपोर्ट में लेखक Ben Scott ने कहा कि –
“ग्लोबल साउथ के देशों के Fossil Fuels पर निर्भरता में फंसने का जोखिम है, जिससे परिवहन ईंधन के लिए अन्य देशों पर निर्भरता बढ़ सकती है। इन ईंधन आयातों के परिणामस्वरूप पर्याप्त पूंजी (substantial capital) और विदेशी मुद्राओ की हानि होगी।”
रिपोर्ट के अनुसार किन देशो को हो सकता है नुकसान
रिपोर्ट में 12 उभरती अर्थव्यवस्थाओं – ब्राजील, अर्जेंटीना, मैक्सिको, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा, नाइजीरिया, मोरक्को, केन्या, मिस्र और अल्जीरिया का विश्लेषण किया गया है। इन देशों में बड़ी संख्या में Internal Combustion Engines (ICE) वाहन हैं और ये हर साल परिवहन ईंधन के आयात पर अरबों डॉलर खर्च करते हैं। इन 12 देशों ने कुल मिलाकर 2021 में 13.3 बिलियन डॉलर के परिवहन ईंधन का आयात किया था।
रिपोर्ट से पता चलता है कि जो वाहन 100% Electric (Battery Electric Vehicle – BEV) हैं, उनमें पारंपरिक ICE वाहनों की तुलना में ईंधन भरने की लागत कम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ईंधन खरीदा और परिवहन किया जाता है, जबकि बिजली कम महंगी है, खासकर जब यह नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (renewable energy) से आती है। Scott ने कहा, “इलेक्ट्रिक कारों के बेड़े को पारंपरिक ईंधन भरने की तुलना में बहुत कम लागत पर स्थानीय नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके चार्ज किया जा सकता है।”
आगे स्कॉट ने कहा कि “यह परिवर्तन आसान नहीं होगा, नई कारों की सीमित बिक्री के कारण इलेक्ट्रिक कारें ग्लोबल साउथ में बड़े पैमाने पर प्रवेश नहीं कर पाएंगी। प्रयुक्त इलेक्ट्रिक कारें रीसाइक्लिंग या पुनर्उपयोग के लिए ग्लोबल नॉर्थ में रह सकती हैं। इसे संबोधित करने के लिए, ग्लोबल साउथ को इलेक्ट्रिक परिवहन के पक्ष में पर्यावरण-अनुकूल नीतियों को लागू करने और धीरे-धीरे दहन वाहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता है”
कार्बन ट्रैकर रिपोर्ट ने उन कदमों को भी सूचीबद्ध किया है जो सरकारों को Electric Vehicle परिवर्तन के लिए उठाने होंगे। इसमें कहा गया है, सरकार को पुरानी कारों पर आयात प्रतिबंध और आयु प्रतिबंध, उत्सर्जन सीमा और ईवी पर टैरिफ हटाने जैसी नीतियों के साथ बदलाव को प्रोत्साहित करना चाहिए। घरेलू उत्पादन बढ़ाना और ईवी का पुनर्चक्रण भी परिवहन उत्सर्जन में कटौती के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा।
निष्कर्ष
इस रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों की तकनीकी प्रगति का लाभ उठाने से इन देशों को कई आर्थिक लाभ होंगे। विशेष रूप से, इससे वाहन की कम कीमतों और परिचालन खर्चों के कारण उपभोक्ताओं के लिए लागत कम हो जाएगी। इन नीतियों पे देरी से अमल करने पर इन 12 देशो को नुक्सान हो सकता है जिसका मतलब एक मूल्यवान अवसर खोना हो सकता है।
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